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Sunday 5 January 2014

अगीत की शिक्षाशाला.....कार्यशाला १६ अगीत छंद व उनका रचना विधान....-गतिमय सप्तपदी अगीत..एवं..-लयबद्ध षटपदी अगीत......

                अगीत की शिक्षाशाला.... ... ...अगीत में रस छंद अलंकार योजना---क्रमश ... अगीत- छंद....      

                                              
                 (   लय गति  काव्य-विधा के अपरिहार्य तत्व विशेषताएं हैं जो इसे गद्य-विधा से पृथक करती  
 है  | यति --काव्य को संगीतमयता के आरोह-अवरोह के साथ कथ्य भाव को अगले स्तर पर परिवर्तन की  

स्पष्टता से विषय सम्प्रेषण को आगे बढाती है | तुकांत बद्धता ..काव्य के शिल्प सौंदर्य को बढाती है परन्तु  

संक्षिप्तता, शीघ्र भाव-सम्प्रेषणता अर्थ-प्रतीति का ह्रास करती है | अतः वैदिक छंदों ऋचाओं की अनुरूपता  
तादाम्य लेते हुए अगीत मूलतः अतुकांत छंद है | हाँ लय गति इसके अनिवार्य तत्व हैं तथा तुकांत, यति,  
मात्रा गेयता का बंधन नहीं है | अगीत वस्तुतः अतुकांत गीत है |

                                     अगीत कविता का मुख्य अभिप्राय: है राष्ट्र, समाज जमीन से जुडी वह छोटी अतुकांत कविता जो पांच से दस पंक्तियों से कम या अधिक की हो | जिसमें लय गति हो , गेयता का बंधन हो एवं मात्रा- बंधन भी आवश्यक नहींवर्तमान में अगीत काव्य-विधा में प्रचलित प्रयोग होरहे विविध छंदों का नीचे वर्णन किया जा रहा है | वे छंद ये हैं-----

- अगीत छंद ......-लयबद्ध अगीत -गतिमय सप्तपदी अगीत-लयबद्ध षटपदी अगीत -नव-अगीत -त्रिपदा अगीत  -त्रिपदा अगीत गज़ल |)
                                        कार्यशाला १६  .अगीत छंद व उनका रचना विधान.....छंद -गतिमय सप्तपदी अगीत..एवं..४-लयबद्ध षटपदी अगीत......


छंद.३.सप्तपदी गतिबद्ध अगीत छन्द---सात पक्तियों वाली, सममात्रिक, गतिमयता व गेयता युक्त अतुकान्त रचना प्रत्येक पन्क्ति में--१६ मात्रायें।


" क्रोध देखकर भृगु नायक का,
मंद हुई  गति धारा-गगन की;
मौन  सभा मंडप में छाया |
बोले,' कौन दुष्ट है जिसने -
भंग किया पिनाक यह शिव का ;
उत्तर नहीं मिला तो तत्क्षण ,
कर दूंगा निर्वीर्य धारा को || "
         ----- अगीत महाकाव्य सौमित्र गुणाकर से ..


 
“छुब्ध  होरहा है हर मानव ,
पनप रहा है वैर निरन्तर,

राम और शिव के अभाव में,
विकल हो रहीं मर्यादायें;
पीडाएं हर सकूं जगत की,
ग्यान मुझे दो प्रभु प्रणयन का।     --जगत नारायण पान्डे  (मोह और पश्चाताप से)
 


४.. लयबद्द षटपदी अगीत छन्द छह पन्क्तियों युक्त, सममात्रिक ,१६-१६ मात्राओं की लयबद्ध, गतिमय, गेय अतुकान्त रचना…. उदाहरणार्थ….

    
     “पर ईश्वर है जगत नियन्ता ,
     कोई है   अपने ऊपर  भी,
     रहे तिरोहित अहं-भाव सब ,
     सत्व-गुणों से युत हो मानव,
     सत्यं, शिवम भाव अपनाता,
     सारा जग सुन्दर हो जाता ।“    ---डा श्याम गुप्त ( सृष्टि  महाकाव्य से)
 
" हम क्षत्री है वन में मृगया,
करना तो खेल हमारा  है |
तुम जैसे दुष्ट मृग-दलों को,
हम  सदा  खोजते  रहते  हैं |
चाहे  काल स्वयं सम्मुख हो,
नहीं मृत्यु से डरते हैं हम || "                           ---शूर्पणखा काव्य उपन्यास से ( डा श्याम गुप्त )


                               -------क्रमश ... अगीत की शिक्षाशाला.... ... ...अगीत में रस छंद अलंकार योजना--. अगीत- छंद....  ५ व ६ ....