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Sunday 22 September 2013

त्रिपदा अगीत ग़ज़ल ..अगीत शिक्षाशाला -कार्यशाला ११.....डा श्याम गुप्त ....


            अगीत की शिक्षाशाला   --                                       

                      { अगीत विधा कविता में  अगीत , लयबद्ध अगीत ,गतिमय सप्तपदी अगीत , लयबद्ध षट्पदी अगीत , नव-अगीत,  त्रिपदा अगीत  आदि छः प्रकार के अतुकांत छंद प्रयोग होरहे हैं एवं  सातवीं विधा 'त्रिपदा अगीत ग़ज़ल' है|)

                                कार्यशाला -११ ..त्रिपदा अगीत ग़ज़ल...


         त्रिपदा अगीत गज़ल...तीन से अधिक त्रिपदा-अगीत छन्दों की मालिका होती है जिसमें प्रथम छन्द की तीनों पंक्तियों के अन्त मैं वही शब्द होते है बाकी छन्दों की अन्तिम पंक्ति मैं वही शब्द आवृत्ति होती है, अन्तिम छंद में रचनाकार का नाम या  उपनाम इसका रचना विधान निम्न  प्रकार होना चाहिए.....

१.त्रिपदा अगीत छंदों  की मालिका जिसमें तीन या अधिक छंद होने चाहिए | 
२.प्रथम छंद की तीनों पंक्तियों के अंत में वही शब्द आवृत्ति होनी  चाहिए | 
३ .शेष छंदों में वही शब्द आवृत्ति अंतिम पंक्ति में आना आवश्यक है | 
४.अंतिम छंद में कवि अपनी इच्छानुसार अपना नाम या उपनाम रख सकता है |

     

          पागल दिल 

क्यों पागल दिल हर पल उलझे ,

जाने क्यों किस जिद में उलझे ;

सुलझे कभी, कभी फिर उलझे |



 तरह-तरह से समझा देखा ,

पर दिल है उलझा जाता है ;

क्यों  ऐसे पागल से उलझे |



धडकन बढती जाती दिल की,

कहता  बातें किस्म किस्म की ;

ज्यों काँटों में आँचल उलझे  ||                     





         बात करें

भग्न अतीत की न बात करें ,

व्यर्थ बात की क्या बात करें ;

अब नवोन्मेष की बात करें |



यदि महलों में जीवन हंसता ,

झोपडियों में जीवन पलता ;

क्या उंच-नीच की बात करें |



शीश झुकाएं क्यों पश्चिम को,

क्यों अतीत से हम भरमाएं ;

कुछ आदर्शों की बात करें |



शास्त्र बड़े-बूढ़े और बालक ,

है सम्मान देना, पाना तो;

मत श्याम' व्यंग्य की बात करें ||                     ---डा श्याम गुप्त  |

                            अगीत की शिक्षाशाला ...क्रमश ..........

















     

 

Tuesday 17 September 2013

त्रिपदा अगीत..अगीत की शिक्षाशाला--कार्यशाला १०....डा श्याम गुप्त ....

अगीत की शिक्षा शाला   --                                       

                      { अगीत विधा कविता में  अगीत , लयबद्ध अगीत ,गतिमय सप्तपदी अगीत , लयबद्ध षट्पदी अगीत , नव-अगीतत्रिपदा अगीत  आदि छः प्रकार के अतुकांत छंद प्रयोग होरहे हैं एवं  सातवीं विधा 'त्रिपदा अगीत ग़ज़ल' है|)

 

                                  कार्यशाला १०....   त्रिपदा अगीत ....

              त्रिपदा अगीत ....प्रत्येक पंक्ति में १६-१६ निश्चित मात्राओं  एवं  निश्चित तीन पंक्तियों  वाला यह संक्षिप्त अतुकांत ,अगीत छंद ...त्रिपदा-अगीत है जिसमें तुकांतता  का बंधन नहीं होता|

                  क्रांतिकारी,  पत्रकार, साहित्यकार , समाजसेवी व कवि पद्मश्री पं.वचनेश त्रिपाठी जो अगीत आंदोलन व अगीतायन से जुड़े थे एवं वरिष्ठ परामर्शदाता थे ; उनके निधन ( सन २००६ई) पर श्रृद्धांजलि समारोह के अवसर पर उनकी स्मृति में मैंने ( डा श्याम गुप्त ) एक अन्य नवीन अगीत छंद का सृजन किया | इसे 'त्रिपदा अगीत ' का नाम दिया गया | इस छंद को पं. वचनेश त्रिपाठीजी को ही समर्पित किया गया | इस छंद का रचना विधान यह है ----
 

१.अतुकांत छंद
२.तीन पंक्तियों से कम व अधिक नहीं
३.गतिबद्ध परन्तु गेयता का बंधन नहीं
४. सोलह-सोलह निश्चित मात्राओं की तीनों पंक्तियाँ |

यथा----

"श्वेत धवल दाडी लहराती,
भाल  विशाल, उच्च आभामय ;
सच्चे निस्पृह युग-ऋषि थे वे |"           
           ---- वचनेश त्रिपाठी के प्रति ( डा श्याम गुप्त )

   प्यार बना ही रहे हमेशा ,
ऐसा सदा नहीं क्यों होता ;
सुन्दर नहीं नसीब सभी  का |"     
                  ----- सुषमा गुप्ता  


आँख मूद कर हुक्म बजाना,
सच  की बात न मुंह पर लाना ;
पड जाएगा कष्ट उठाना | "                          ---- डा श्याम गुप्त

" नैन नैन मिल गए सुन्दरी,
नैना  लिए झुके भला क्यों ;
मिलते क्या बस झुक जाने को |"                        डा श्याम गुप्त


"निहारूंगा मैं तुझे अपलक
   जैसे एक अबोध कता है
    इन्द्रधनुष  की ओर एक टक |"                              .... पार्थोसेन ...


" पायल छनका कर दूर हुए,
हम कुछ ऐसे मज़बूर हुए ;
उस नाद-ब्रह्म मद चूर हुए |"                   ---डा श्याम गुप्त

" सावन सूखा बीत गया तो,
दोष बहारों को मत देना ;
तुमने सागर किया प्रदूषित | "                        ---- डा श्याम गुप्त