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Saturday 3 August 2013

जीवन तो सृजन के लिए......अगीत की शिक्षा शाला - कार्यशाला-2 ....डा श्याम गुप्त ....

                     अगीत की शिक्षा शाला - कार्यशाला-2 ....डा श्याम गुप्त ....

      'अगीत पांच से दस तक पंक्तियों वाली अतुकांत कविता है जिसमें मात्रा व तुकांत बंधन नहीं है | यह एक वैज्ञानिक पद्धति है वर्तमान में सामाजिक सरोकारों व उनके समाधान केलिए विद्रोह है, एक नवीन खोज है |
      -----कुछ प्रसिद्ध अगीत प्रस्तुत हैं.......

जीवन तो सृजन के लिए
कुछ तो करना होगा मन,
यूंही  न छूट जाए श्वांस
अपने में जीवित विश्वास,
सार्थक होजायेगा तन
मधुवन तो भजन के लिए |    ------ डा रंग नाथ मिश्र 'सत्य;'

दिन वो काफूर हो गए,
जब से तुम ओझल   होगये,
सारे संवंध ढल गए ,
पीडाओं ने डेरा डाला
जीवन में द्वंद्व बढ गए ;
मिलाने जो आते थे प्रायः
वही आज दूर होगये |           ------ डा रंग नाथ मिश्र 'सत्य;'


पावर कट
पर्यावरण सुधार की  दिशा में
क्रियात्मक उपाय सुझाती है,
हाथ के पंखे, पेड़ की छाँह की
ठंडी हवा का आनंद दिलाती है
ऐसी फ्रिज कूलर पंखे आदि भौतिक सुखों की
निरर्थकता दिखाती है
गावं की याद दिलाती है,
हमें अट्ठारहवीं उन्नीसवीं सदी में पहुंचाती है |           ...... डा श्याम गुप्त

जीवन
निरंतर सृजन का नाम है
सृजन की निरंतरता ठहराने पर,
जीवन ठहर जाता है ;
ठहराना अगति है
गति बिना जीवन कहाँ रह जाता है |                 ..... डा श्याम गुप्त

हरा भरा नहीं कर पाया
सूखे केट को ननकू ,
सरकार का पैसा भी नहीं देपाया;
अतः समाप्त करली-
यह जीवन लीला उसने,
और मुक्त होगया
दोनों समस्याओं से |                                      ...... पार्थो सेन ( अगीत माला से )


न मृत्यु थी न अमरता
न रात्रि  न दिवस के चिन्ह ,
उस समय भी
अपने स्वभाव से अनाश्रित श्वांस
वह एक अकेला लेता था
शायद वही ईश्वर था |                                .... धुरेन्द्र स्वरुप विसरिया 'प्रभंजन'

तुम मेरा दिल लगाये
फिर भी मैं जीवित हूँ,
यही क्या कम है |
बिछोह की व्यथा सहकर
भी जीवित रहना मेरा-
अतुलनीय पराक्रम है |                               ... सुरेन्द्र कुमार वर्मा
               

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