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Friday 30 August 2013

अगीत की शिक्षा शाला ----कार्यशाला -७ ...लयबद्ध षट्पदी अगीत ....डा श्याम गुप्त ...

          

                                        अगीत की शिक्षा शाला                                             

                     
{ अगीत विधा कविता में  अगीत , लयबद्ध अगीत ,गतिमय सप्तपदी अगीत , लयबद्ध षट्पदी अगीत , नव-अगीत,  त्रिपदा अगीत  आदि छः प्रकार के अतुकांत छंद प्रयोग होरहे हैं एवं  सातवीं विधा 'त्रिपदा अगीत ग़ज़ल' है|)

                             कार्यशाला- ७ --...लयबद्ध षट्पदी अगीत  छंद ....

               यह छः पंक्तियों का , प्रत्येक पंक्ति में १६ मात्राओं युक्त सममात्रिक एवं  लयबद्धता एवं गेयता युक्त  अतुकांत छंद है |  इसका सृजन  डा श्याम गुप्त ने  किया एवं  उनका  प्रथम अगीत महाकाव्य   "   सृष्टि - ईषत-इच्छा या बिगबेंग ( एक अनुत्तरित  उत्तर ...)"    इसी  छंद में रचा गया  था ....तदुपरांत  उनकी रामकथा पर आधारित खंड-काव्य शूर्पणखा में भी इसी छंद का प्रयोग किया गया है .....उदाहरण देखें ....


"
जग की इस अशांति-क्रंदन का,
लालच  लोभ  मोह-बंधन का |
भ्रष्ट  पतित सत्ता गठबंधन,
यह सब क्यों, इस यक्ष -प्रश्न का |
 
एक यही  उत्तर सीधा सा ;
भूल  गया नर आप स्वयं को || "            ------सृष्टि महाकाव्य से ( ड़ा श्याम गुप्त
)

" निजी स्वार्थ के कारण मानव ,  

अति दोहन कर रहा प्रकृति का |

 प्रतिदिन एक ही स्वर्ण अंड से , 

उसका लालच नहीं सिमटता | 

चीर कलेजा एक साथ ही ,

पाना  चाहे स्वर्ण खजाना | "                     ---- सृष्टि महाकाव्य से 

       एवं ....

लोलुप भ्रमरों की बातें क्या ,
ललचाते  अतुलित  शूर वीर |
इस  तन की कृपा, प्रणय भिक्षा ,
हित, कितने ही पद-दलित हुए |
पर आज मुझे क्यों लगता है,
संगीत फूटता कण कण से ||"                    ---- ( शूर्पणखा काव्य-उपन्यास से...डा श्याम गुप्त )

' नव षोडशि सी इठला करके ,
मुस्काती तिरछी चितवन से |
बोली रघुबर से शूर्पणखा ,
सुन्दर पुरुष नहीं तुम जैसा ;
मेरे जैसी सुन्दर नारी,
नहीं
जगत में है कोई भी ||"                          ---- डा श्याम गुप्त ( शूर्पणखा खंड-काव्य से )



" हम क्षत्री है वन में मृगया,
करना तो खेल हमारा  है |
तुम जैसे दुष्ट मृग-दलों को,
हम  सदा  खोजते  रहते  हैं |
चाहे  काल स्वयं सम्मुख हो,
नहीं मृत्यु से डरते हैं हम || "   
                        ---शूर्पणखा काव्य उपन्यास से ( डा श्याम गुप्त )

" विविध रंगकी सुमन वल्लरी ,
विविध रंग की सुमनावालियाँ ;
एवं नव पल्लव लड़ियों से,
सीता ने विधि भांति सजाया |
हर्षित होकर लक्ष्मण बोले,
'
करें पदार्पण स्वागत है प्रभु
! "  
                     ---- शूर्पणखा खंड काव्य से
 


                     ---- क्रमश ...कार्यशाला ८ ...

 


 

     

Monday 26 August 2013

अगीत की शिक्षा शाला -गतिमय सप्तपदी अगीत---कार्यशाला -6 ....डा श्याम गुप्त ...

                                        अगीत की शिक्षा शाला                                             

                     
{ अगीत विधा कविता में  अगीत , लयबद्ध अगीत ,गतिमय सप्तपदी अगीत , लयबद्ध षट्पदी अगीत , नव-अगीत,  त्रिपदा अगीत  आदि छः प्रकार के अतुकांत छंद प्रयोग होरहे हैं एवं  सातवीं विधा 'त्रिपदा अगीत ग़ज़ल' है|)

                             कार्यशाला- 6 --गतिमय सप्तपदी अगीत

 

         यह सात पक्तियों वाली, सममात्रिक, गतिमयता व गेयता युक्त अतुकान्त छंद रचना है जिसमें प्रत्येक पन्क्ति में--१६ मात्रायें होती हैं |यह छंद प्रवुद्ध अगीतकार पंडित जगत नारायण पण्डे ने सर्वप्रथम अपने खंडकाव्य ' मोह और पश्चाताप ' में नव-सृजित करके प्रयोग किया था |उदाहरणार्थ...
 
“छुब्ध  होरहा है हर मानव ,
पनप रहा है वैर निरन्तर,
राम और शिव के अभाव में,
विकल हो रहीं मर्यादायें;
पीडाएं हर सकूं जगत की,
ज्ञान मुझे दो प्रभु प्रणयन का।            --जगत नारायण पान्डे  (मोह और पश्चाताप से)

      
"
क्रोध देखकर भृगु नायक का,
मंद हुई  गति धरा-गगन की;
मौन  सभा मंडप में छाया |
बोले,' कौन दुष्ट है जिसने -
भंग किया पिनाक यह शिव का ;
उत्तर नहीं मिला तो तत्क्षण ,
कर दूंगा निर्वीर्य धारा को || "
  
              --महाकवि पं. जगत नारायण पांडे  )

                                                                         
" गणनायक की कृपादृष्टि को ,
माँ वाणी ने दिया सहारा |
खुले कपाट बुद्धि के जब, तब-
हुए शब्द-अक्षर संयोजित;
पाई  शक्ति लेखनी ने फिर|
रामानुज की विमल कथा का,
प्रणयन है अगीत शैली में ||"            ------सौमित्र गुणाकर महाकाव्य से |


                          ------क्रमश --कार्यशाला -७ --षट्पदी अगीत छंद  .....